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‘ हम तेजी से आगे बढ़ने में
यथास्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकते
आगे बढ़ना चुनें’

प्लुरल्स महज़ एक राजनीतिक दल नहीं है बल्कि एक राजनीतिक क्रांति है जो इस विचार पर आधारित है कि हर एक ज़िंदगी क़ीमती है और इसे अपने आप में एक अंत की तरह देखा जाना चाहिए न कि महज़ एक साधन मात्र के रूप में। विविधता हमारी ताक़त है और प्रगति तभी सम्भव है जब सब का शासन हो। दशकों तक चली आज़ादी की लड़ाई के पीछे भी यही सोच थी जिसे हमने आख़िरकार उस समय जीत ही लिया। दुर्भाग्यवश, समय के साथ-साथ हम 'अपने लोगों’ से शासित होने मात्र से ही संतुष्ट होकर थोड़े ढीले पड़ गए। निस्सन्देह, हमारे रंग समान हैं, या हम समान भाषा बोलते हैं, या हमारी तथाकथित ‘पहचान’ एक है, लेकिन क्या सच में ये हमारे ‘अपने लोग’ हैं? यह अतार्किक होगा कि हम उन सत्तानशीनों के साथ ख़ुद को जुड़ा हुआ पाएँ जिनमें शासन करने के सबसे बुनियादी गुण अर्थात ‘सहानुभूति’ तक का अभाव हो।

विगत वर्षों में बिहार की बहुसंख्यक आबादी के लिए प्रगति कर पाना कठिन हो गया है। सरकार सिर्फ़ उन लोगों की सुनती है जिनके ऊँचे सत्ताधारी लोगों से सम्पर्क हैं। राज्य के बाक़ी लोग पीछे छूट गए हैं। जीवन की गुणवत्ता अत्यंत दयनीय है और एक आम आदमी की ज़िंदगी का कोई मोल नहीं है। बड़ी संख्या में लोग मरते हैं, लापता हो जाते हैं, मार दिए जाते हैं या उनके साथ बलात्कार होता है, लेकिन वो समाचार की सुर्ख़ियाँ नहीं बन पाते। और अगर वो समाचार में आ भी जाते हैं तो सरकार अनसुना कर देती है। हाँ, सरकार परवाह करती है जब कुछ बड़ा बाहर आ जाता है। स्पष्ट है कि यह सोचना ख़ुद को गुमराह करना है कि यहाँ हम ‘सभी का शासन’ है और इसलिए सही मायनों में हम सच्ची आज़ादी से बहुत दूर हैं।

पूरी दुनियाँ काफ़ी तेज़ी से प्रगति कर रही है लेकिन बिहार दुनियाँ का सबसे पिछड़ा क्षेत्र बना हुआ है। हम अभी भी देश में भी सबसे निचले रैंक पर हैं। बात सिर्फ़ रैंक की नहीं है, महत्वपूर्ण है कि यह रैंक क्या बताता है। ग़रीबी, कुपोषण, निरक्षरता, बेरोज़गारी, और ऐसे सभी विकास के मापदंड जहाँ तुरंत पॉलिसी एक्शन की ज़रूरत है। ये मापदंड हर दिन बिहार में मौत की संख्या बढा रहे हैं।

आज़ादी के 73 सालों के बाद भी हम लगभग हर साल बाढ़ के कारण विस्थापित होते हैं, जिसे सरकार ने अन्य समस्याओं की तरह ही लाईलाज घोषित कर दिया है। ‘इसे रोका नहीं जा सकता और ये तो होता ही है’, आपदाओं में ऐसे सरकार के स्टैंडर्ड जवाब होते हैं (यदि वे जवाब देने की परवाह करें तो)। यहाँ पब्लिक को ग़लत सूचना देकर अपनी नालायकी को छुपाना एक सामान्य सी बात है। सच्चाई क्या है? असली विकास सरकार के एजेंडा में कभी रहा ही नहीं है। आज़ादी के बाद सरकार राज्य की राजधानी तक में एक ड्रेनेज सिस्टम या बुनियादी इंफ़्रास्ट्रक्चर तक नहीं बना पाई, पूरे राज्य की तो बात ही छोड़ दें। मानव सभ्यता ने सी-लिंक, भूकम्परोधी बिल्डिंग और अंडर-सी ट्रेन तक बना लिए हैं और अब चंद्रमा तक जा रहे हैं। अगर 2020 में भी आपको लगता है कि पिछड़ापन ही वास्तविकता है तो मान लीजिए कि वे आपके साथ खेलने में जीत गए हैं। हम बेहतर के लायक़ हैं, और विश्वास कीजिए बेहतरी सम्भव है।

2020 में हमें एक विकल्प चुनना है - प्लुरल्स के साथ आगे बढ़ें और एक प्रगतिशील बिहार का निर्माण करें, या पिछड़े बने रहकर यथास्थिति बनाए रखें जिसमें सिर्फ़ अक्षम राजनेता और अपराधी ही मज़बूत होते रहेंगे। यह चुनाव हमें करना है। यही सच है और बहुत महत्वपूर्ण है।


पुष्पम प्रिया चौधरी

अध्यक्ष, प्लुरल्स

एम.ए., डिवेलप्मेंट स्टडीज़,
इन्स्टिटूट ओफ़ डिवेलप्मेंट स्टडीज़, यूनिवर्सिटी ओफ़ ससेक्स, यूनाइटेड किंग्डम

मास्टर ओफ़ पब्लिक अड्मिनिस्ट्रेशन,
लंडन स्कूल ओफ़ एकनॉमिक्स एंड पोलिटिकल सायन्स, यूनाइटेड किंग्डम